Wednesday, April 15, 2009

तुम्हे भुला देने को मैंने..............

तुम्हे भुला देने को मैंने
कितने अलग रस्ते बदले ,
किंतु तुम्हारे पाँव जंहाँ भी ,
जाता हूँ अंकित मिलते हैं ।
वह बांसुरी तोड़ दी मैंने जिसमे बंद तुम्हारे स्वर थे,
वे सब जगह खुरच दी मैंने ,यंहा तुम्हारे हस्ताक्षर थे।
तुम्हें भुला देने को मैंने रोपे फूल लताएँ सींची,
किंतु तुम्हारी देह - गंध ही,
देते हुए सुमन खिलते हैं।
खोले द्वार सभी वो मैंने जो ख़ुद तुम बंद किए थे,
वे सब कम किए गिन गिन कर बेहद तुमको नापसंद थे।
तुम्हें भुला देने को मैंने महलों से सम्बन्ध बनाये,
उनकी छायादार गली मैं ,
चलते मगर पांव जलतें हैं ,
इतनी भीड़ जुटाई मैंने चरों ओर खड़े अपने हैं।
लगता है लेकिन सबके सब सिर्फ़ अपरिचित हैं सपने हैं।

1 comment:

  1. wakayi samvednaon ki dharatal par kavita sapran hai, umda, sarahniya prayas......

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