Friday, November 15, 2013

गंगा

 

आकार था
आधार ठोस था,
तेरे स्पर्श की उन्स से पिघल
न जाने ये पानी बन गया,
तेरे मर्म ने उसे संजो अपना आधार दे दिया,
तब से अब तलक बहती हूँ,
तेरे आकार मेँ निर्मल गंगा की तरह।

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