Wednesday, September 30, 2009

मेरी निगाह......


बहुत करीब से हमें वो देखती है निगाह ,के मेरी जिन्दगी का दायरा कितना है बड़ा ,

जिंदगी का दायरा मालूम है हमें ........ देखो जरा गौर से ये ओउर करती है क्या बाया...?

कि ताकती शुन्य में जैसे खो गया हो कोई अपना जिसने कभी इन आँखों में संजोया था सुनहरा सपना।

मुक्कमल आपका कभी हो दीदार हमें खोये हुए सपने ढूँढ लाने की कोशिश करेंगे ।

शुक्रिया ! दोस्त आपका कि दोस्ती का हक अता किया।

दुआ करो कि हकीक़त में तब्दील हों सपने , रहम दिल हैं खुदा ! दीदार भी होगा .....

अब ये निगाह मेरे सपनों में ना आये आप रोकना ये सब आपके हाथ में है ....

सपने तो बस सपने होते हैं दोस्त ॥हकीक़त ना समझना ।

खूबसूरत होते हैं रेत के घरोंदे भी पर वो होता नहीं अपना।







2 comments:

  1. किसी चीज को समझने का हर किसी का आपना नजरिया होता है.मेरे एक ऑरकुट मित्र ने इन आँख के बारे में अपनी राय जाहिर कि थी . उनसे बात चित का कुछ अंश प्रस्तुत कर रही हूँ .इस आँख के बारे में आप कि राय जानना चाहती हूँ.

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  2. first two lines r very good, but , next line ka takluph aadhura hai
    ussa , tum misra ka saath nahi joor payee ho,
    mera advice kaa bura mat maanna
    mai thora , jaida bool gaya

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