Wednesday, November 13, 2013

               सफर

जीवन के सफर में हर मोड़ पर दर्द मिला
रूकी नहीं चलती रही, लड़खड़ाते कदमों से ही सही।
नहीं मानती वह समाज के दुषित दुर्बल नियम
जो बनाया स्वार्थी समाज ने
उसके पैरों में बेड़ियाँ डालने को।

सुख, दुख, नफरत, मान, अपमान,
दुनिया की कचोटती निगाहों से बेखबर,
पगली अपने में गुम है।
 
 उसकी खामोश आँखों में
 उम्मीद की नन्हीं सी कश्ती
 जिसमें बैठ वह ढ़ूंढ़ती है
किसी अपने का साथ।
******अंशु******

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