Tuesday, February 26, 2013


कुछ बिसरे पन्नों सेः 


अम्रपाली-

आँगन के एक कोने मेँ अम्रपाली का पौधा मंजरियों से लदा हवा को मंहका के इतरा रहा था। वहीं दूसरे कोने पे अनार का पौधा नये पत्तों से लदा, लाल-लाल कलियों से सजा प्रसन्न अवस्था मेँ खड़ा मुस्कुरा रहा था। एक छोड़ पे बेचारा अमरुद का पेड़, सबसे ज्यादा लम्बा सीधा खड़ा था। उसके पत्तों के बीच सफेद फूल वाले छोटी-छोटी फलियां निकलनी शुरु हो गई थी। तभी घमंडी बसंती हवा अपने तेज झोँके से उसे झकझोड़ दिया, ढेर सारे सफेद फूल आँगन मेँ झड़ गये। अम्रपाली अपना मुँह चिढ़ा कर बोली निगोड़ी !क्या कर रही है, क्यूं उसे तंग करती है ! तभी एक तेज थपेड़ा उसके मुँह पे पड़ा और उसकी भी कुछ मंजरियां झड़ के आँगन मेँ बिखर गई।

बेचारी अम्रपाली खिन्न मन अनार को ताकने लगी ! उसे लगा जैसे उसने अमरुद के लिए हवा को ललकारा था, उसी तरह अनार उसका पक्ष लेगी। पर अनार तो कान में तूर डाल के ज्यों की त्यों सिर्फ मुस्कुराती रही। यह देख अम्रपाली और भी चिढ़ गई। तभी उसने देखा कि पड़ोस की कटहल अपनी टहनी अनार से चिपका के उसे फुस-फुसा के कुछ कह रही थी, अनार के सारे फूल सुर्ख हो गये और खिलखिला पड़े। अम्रपाली ने एक नजर अमरुद पे डाली। आह...! बेचारा अमरुद दिखने को तो इतना बड़ा हो गया, पर अक्ल तो जैसे इसके तने मेँ है। मंदबुद्धि कहीं का...! और ये कटहल न जाने अपने को क्या समझता है...! "मंजरि न फूल फल लगा के झूल " । इसके तो फल भी कांटेदार होते हैँ। फिर भी घमंड में ऐँठ रहा है। तभी हवा का एक और थपेड़ा...सफेद फूल और मंजरी के साथ-साथ लाल फूल और कटहल के कुछ पत्ते भी आँगन में बिखर गये। इस बार अम्रपाली को थोड़ा सुकून मिला। अब समझो दूसरे की झड़ती है तो कैसा लगता है...! अनार अब भी मुस्कुरा रहा था। यही होता था नित भोर से साँझ तलक।
समय बीता। अम्रपाली फलों से लद के झुक गयी। अनार की डालियां भी झुकी थी। अमरुद के पेड़ पे पड़ोस के बच्चे फल तोड़ने मेँ जुटे हुए थे। कटहल अकड़ के खड़ीं थी। उसके तनों पर भी फल लटक रहे थे। तभी अनार ने अम्रपाली से कहा, बहन ! तूँ इतनी उदास क्यों है..? तेरी उदासी की वजह से तेरे फल भी कितने उदास हो लटक रहे हैँ !! क्या करूँ...अनार ! देखो सारे बच्चे अमरुद को तोड़ कर कैसे खा रहे हैं ! कुछ दिनो में अमरुद का पेड़ सूना हो जाएगा, फिर हमारी बारी आयेगी, वो तुम्हारे फल भी तोड़ कर खा जाएंगे। हम फिर से तनहा हो जाएंगे। यही सोचकर मैं उदास हो गई हूँ। रि अम्रपाली बहन ! कल की कल देखेँगे आज क्यों उदास होना, आज तो खुशी का दिन है, हँसने का दिन है। यह कह अनार खिखिया के हँस पड़ी खी खी खी...अमरुद भी हंसा ही ही ही... कटहल भी हंसा हा हा हा ह....।

सबको हंसते देख अम्रपाली भी मंद-मंद मुस्कुराने लगी। उसके फल भी हौले-हौले मुस्कुरा के झूलने लगा। आँगन मेँ खुशियां बिखर गई। तभी दूर गगन में चाँद अपनी चाँदनी के साथ दिखाई दिया। उनकी दुधिया रौशनी में सारी दुनिया नहा गई, और रात ने अपनी आँचल में दिन को समेट मिठी नींद में सुला दिया।।।

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