Sunday, July 19, 2009

नुशरत फ़तेह अली खान की यादगार बोल

मोरे अंग-अंग बाजे मधुर बांसुरी तोरी यादों के छैंय्या तले

धीरे-धीरे पवन नाचो हे मोरा मन,

धीरे धीरे पवन नाचो हे मोरा मन जैसे नदिया में नैय्या चले

मोरे अंग-अंग बाजे..........................,

आज सपनो की नगरी में खो जाउंगी ,

आज अपने पिया की में हो जाउंगी

मेरे हाथन की मेंहदी अगन रूप हे,

मेरे हाथन की ............................,

जैसे सूरज हो शाम ढले

सवारिया में कब से तेरी चाह में ,

नैन बनके बिछी हूँ तेरी राह में,

मेरे मन का दिया जल रहा हे पिया,

मेरे मन का दिया जल रहा हे पिया

बेरी चन्दा जले जले

मोरे अंग -अंग बाजे मधुर बांसुरी तोरी यादों के छैंय्या तले॥

धीरे -धीरे पवन नाचो हे मोरा मन जैसे नदिया में नैय्या चले