Wednesday, September 30, 2009

मेरी निगाह......


बहुत करीब से हमें वो देखती है निगाह ,के मेरी जिन्दगी का दायरा कितना है बड़ा ,

जिंदगी का दायरा मालूम है हमें ........ देखो जरा गौर से ये ओउर करती है क्या बाया...?

कि ताकती शुन्य में जैसे खो गया हो कोई अपना जिसने कभी इन आँखों में संजोया था सुनहरा सपना।

मुक्कमल आपका कभी हो दीदार हमें खोये हुए सपने ढूँढ लाने की कोशिश करेंगे ।

शुक्रिया ! दोस्त आपका कि दोस्ती का हक अता किया।

दुआ करो कि हकीक़त में तब्दील हों सपने , रहम दिल हैं खुदा ! दीदार भी होगा .....

अब ये निगाह मेरे सपनों में ना आये आप रोकना ये सब आपके हाथ में है ....

सपने तो बस सपने होते हैं दोस्त ॥हकीक़त ना समझना ।

खूबसूरत होते हैं रेत के घरोंदे भी पर वो होता नहीं अपना।







Saturday, September 26, 2009

मै एक साहित्य प्रेमिका हूँ , लेखिका नहीं हूँ। परन्तु कभी कभी मेरे ह्रदय में भी भावनाओं का लहर उठता है... ओउर मुझे उस लहर को शब्दों में तब्दील करने आता है। वो शब्द सुंदर रचना में तब्दील हो जाती है। बस नही आता तो उन रचनाओं का सदुपयोग करना ।

Sunday, September 6, 2009

जिंदगी


जिंदगी उमंग है,
जो मेरे संग है,
इसके जितने रंग है... सब मैं आनंद हैं,
जिंदगी एक ख्वाब है,
ये तो एह्शाश है,
एह्शाश काफी खाश है...जिंदगी मेरे पास है।

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लाचार ज़िन्दगी !!!!!!!!
मेरी ज़िन्दगी बेरंग सी क्यों है,
न खुशी न गम .......
न महफ़िल न रंज
क्यों है मेरी ज़िन्दगी इतनी बेरंग....???!!!
कहने को बहुत बड़ी है दुनिया ....
पर क्या इसमे मेरी खुशियों के लिए कोई ज़गह नही.....??????!!!!
अगर है तो क्यों है इतना तंग?
हाय!!! मेरी ज़िन्दगी कितनी बेरंग......
दोस्त भी हैं कहने को मगर ,
दिल के कोने में छुपा गम,
बयां भी कैसे करें उनसे .......
कही ख़तम ही न हो जाए वो गम जिसके सहारे ज़िन्दगी तो है ।
कहने को खुदा ने ज़िन्दगी दी है जीने केलिए .........
पर मुझे तो जीना पर रहा है ...क्युकी ज़िन्दगी है ।
ये कैसा अत्याचार है ?? ये ज़िन्दगी कितनी लाचार है।!!!
.......