Saturday, April 3, 2010

तुम ख़ास नहीं

कैसे कह दूँ तुम ख़ास नहीं ? तुम सच हो सिर्फ एह्शाश नहीं, हकीक़त हो कोई ख्वाब नहीं, दीखते तो तुम हो दूर मगर , पर दुरी में भी पास हो तुम कैसे समझाऊं दिल को मै कैसे कह दूँ तुम खास नहीं....??!

Thursday, April 1, 2010

ज़िन्दगी कही भाग सी गयी है इस भगदर में

हम ज़िन्दगी में हर चीज से भागते हैं, कभी अपनों से कभी सपनो से, कभी सच से कभी झूठ से तो कभी हकीक़त से। भागते ही रहते हैं ...... भागते ही रहते हैं.. भागते ही रहते हैं... बिना रुके, ओफ! ये भागम-भाग..!! ज़िन्दगी कही भाग सी गयी है इस भगदर में।