सफर
जीवन के सफर में
हर मोड़ पर दर्द मिला
रूकी नहीं चलती
रही, लड़खड़ाते कदमों
से ही सही।
नहीं मानती वह समाज के दुषित दुर्बल नियमजो बनाया स्वार्थी समाज ने
उसके पैरों में बेड़ियाँ डालने को।
सुख, दुख, नफरत, मान, अपमान,
दुनिया की कचोटती निगाहों से बेखबर,
पगली अपने में गुम है।
उसकी खामोश आँखों में
उम्मीद की नन्हीं सी कश्ती
जिसमें बैठ वह ढ़ूंढ़ती है
******अंशु******
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